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Mount Everest:-दुनिया की सबसे ऊंची चोटी जाने माउंट एवेरेस्ट के बारे में

By Prakhar Agrawal

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Mount Everest जिसे हम दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी के रूप में जानते है, यह केवल एक भौगोलिक आश्चर्य नहीं है बल्कि यह एक साहस और दृढ़ता का प्रतीक भी है.माउंट एवरेस्ट नेपाल और तिब्बत की सीमा पर स्थित है. माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई समुद्र तल से 8,848.86 मीटर (29,031.7 फीट) है.नेपाल में इसे सगरमाथा और तिब्बत में चोमोलुंगमा के नाम से जाना जाता है, जिसका मतलब है “पृथ्वी की देवी”.आज के इस आर्टिकल में जानेंगे हम माउंट एवेरेस्ट के बारे में और कैसे आप इंडिया से माउंट एवेरेस्ट तक जा सकते है.

Mount Everest Geographical Condition

माउंट एवरेस्ट जो की हिमालय के पर्वत श्रृंखला पे स्थित है, जो अत्यधिक ठंडे और बर्फ से ढके हुए इलाके के कारण एक खौफ पैदा करने वाला पर्वत चोटी है.यहाँ का तापमान अक्सर माइनस 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है, और बर्फीली हवाएँ 100 मील प्रति घंटे की गति से भी तेज चल सकती हैं.यहाँ मौसम अपने चरम पर रहता है और ऑक्सीजन की कमी माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई को असाधारण रूप से चुनौतीपूर्ण बना देती है.

Mount Everest की खोज किसने की थी?

कुछ ब्रिटैन के सर्वे करने वाली टीम 19वीं सदी में नेपाल पहुंची और वहां पे उन्होंने माउंट एवरेस्ट की खोज की. 1852 में, भारतीय गणितज्ञ राधानाथ सिकदार ने इसे दुनिया की सबसे ऊँची चोटी के रूप में पहचाना.1865 में, ब्रिटैन के जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर इसे “माउंट एवरेस्ट” नाम दिया गया.

Mount Everest पर पहली सफल चढ़ाई

माउंट एवरेस्ट पर सबसे पहले 29 अप्रैल 1953 को न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाल के तेनजिंग नॉर्गे ने चोटी पर पहली सफल चढ़ाई की थी.यह ऐतिहासिक चढ़ाई सबसे बढ़िया उदाहरण है की दृढ़ संकल्प और साहस के साथ असंभव भी संभव हो सकता है.यह चढ़ाई एक प्रेरणा बनी और पूरी दुनिया में साहस और संघर्ष का प्रतीक बन गई.

Mount Everest की कठिनाइयाँ

माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करना एक अत्यंत ही कठिनाइयों से भरा चुनौतीपूर्ण कार्य है, जो शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर व्यक्ति की परीक्षा लेता है.माउंट एवरेस्ट के 8,000 मीटर से ऊपर वाला का क्षेत्र “डेथ ज़ोन” कहलाता है, जहाँ ऑक्सीजन की भारी कमी होने के कारण शरीर की कार्य करने की क्षमता बहुत हद तक कम हो जाती है.इसके अलावा, हिमस्खलन, बर्फीली दरारें,और खतरनाक मौसम जैसी कठिनाइयाँ पर्वतारोहियों के सामने हमेशा खड़ी रहती हैं.

Mount Everest की पर्यावरणीय चुनौतियाँ

माउंट एवरेस्ट पर बीते कुछ सालों में पर्यटन काफी ज्यादा बढ़ गया है जिससे कि वहाँ के पर्यावरण पर गंभीर दबाव पड़ रहा है.प्लास्टिक कचरे, ऑक्सीजन सिलेंडरों, और अन्य चीज़ों ने एवरेस्ट के पर्यावरण और सुंदरता को खतरे में डाल दिया है.जलवायु परिवर्तन भी एक बड़ी चुनौती है,बीते कुछ सालों में ग्लेशियर भी काफी तेजी से पिघल रहे है तो यह भी हमकी देखना होगा.

India से Mount Everest तक कैसे जाएँ?

अगर आप इंडिया से माउंट एवरेस्ट की यात्रा करने के लिए सोच रहे है तो सबसे पहले आपको नेपाल के काठमांडू शहर पहुँचना होता है. काठमांडू तक पहुँचने के लिए भारत के प्रमुख शहरों से सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं या फिर आप सड़क के रास्ते भी काठमांडू शहर पहुँच सकते है. नेपाल के काठमांडू पहुँचने के बाद, आपको लुक्ला हवाई अड्डे के लिए एक छोटी घरेलू उड़ान लेनी होती है.लुक्ला को माउंट एवरेस्ट का प्रवेश द्वार माना जाता है.

Mount Everest की यात्रा करने में कितना समय लगता है?

लुक्ला से एवरेस्ट बेस कैंप तक की यात्रा ट्रेकिंग के माध्यम से की जाती है, जो 12 से 14 दिन का समय ले सकती है अगर आप अपनी गति बनाए हुए है.ट्रेक के दौरान आप नामचे बाजार, तेंगबोचे, डिंगबोचे और गोरेक शेप जैसे प्रमुख स्थानों से गुजरते हैं.इस यात्रा के लिए शारीरिक रूप से तैयार रहना और ट्रेकिंग गाइड का साथ लेना बेहद आवश्यक होता है.कई ट्रेकिंग एजेंसियाँ इस यात्रा के लिए पूरी तैयारी करती हैं, जिनमें परमिट, पोर्टर, गाइड और आवश्यक सामग्री की व्यवस्था शामिल होती है.

Mount Everest की मौजूदा स्थिति

आज के समय में, बेहतर तकनीक और बेहतर उपकरणों के साथ माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करना पहले से थोड़ा सरल हो गया है, लेकिन यह अभी भी पर्वतारोहियों के लिए यह चोटी शारीरिक और मानसिक ताकत की चरम परीक्षा है, और इसके लिए कठोर प्रशिक्षण, अनुभव, और साहस की आवश्यकता होती है.

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