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भारत का सबसे बड़ा ज़ालसाज़ natwarlal पुलिस वाले से खेत जुतवाये और जज से पैसे ले लिये

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By Prakhar Agrawal

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बिहार का सिवान जिला और जिले से लगने वाला 80km दूर गाँव जीरादेई जो प्रसिद्ध हुआ देश के सबसे पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद से लेकिन इसके बाद इस गाँव का नाम natwarlal के वजह से सुर्खियों मे आया, लेकर आए हैं दुनिया के मशहूर ठग नटवर लाल की कहानी.

Natwarlal का जन्म और बचपन

नटवरलाल के पिता का नाम रघुनाथ प्रसाद श्रीवास्तव था और वह रेलवे में काम करते थे और जीरादाई मे ही रहते थे यहीं पे natwarlal का जन्म हुआ था. स्कूल की शिक्षा भी यही हुई के गाँव जीरादाई मे आज भी लोग उसका नाम बड़े सम्मान से लेते हैं Mr natwarlal के नाम से बुलाते हैं या फिर मिथिलेश बाबू क्योंकि उसका असली नाम मिथिलेश श्रीवास्तव है.

जीरादाई मे छोटा सा रेलवे स्टेशन भी है और इस रेलवे स्टेशन से डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद दिल्ली जाया करते थे. डॉ राजेंद्र प्रसाद ने जीरादाई रेलवे स्टेशन से दिल्ली की ट्रेन पकड़ी और राष्ट्रपति भवन पहुंचे नटवरलाल ने जो जीरादाई रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ी वो वहां से देश के कई हिस्सों मे गए और उन्होंने ज़ालसाजी की.

आखरी बार जब वो गाँव पहुँचे

Natwarlal के गांव वाले कहते जब आखिरी बार अपने गांव पहुंचे तो तीन गाड़ियों के काफिले में वह गांव गए थे उसके आने पर सारे गांव के लिए खाना बनवाया गया था जाते-जाते उसने हर एक गांव वालों को 100 -100 रुपये दिए.

नटवरलाल जब पुलिस के गिरफ्त से भाग गए

Natwarlal के बारे में एक किस्सा बहुत मशहूर है साल 1996 में वह कानपुर की जेल में बंद था चलने फिरने से लाचार था उस वक्त उसकी उम्र 84 साल थी व्हीलचेयर से चलता था या फिर कोई उसे गोद में उठाकर एक जगह से दूसरे जगह ले जाता था. बीते 15 दिनों से उसकी तबीयत खराब थी और वह चलने फिरने से भी लाचार था इस दौरान शायद ही किसी ने उसको अपने पैरों पर चलते-फिरते देखा हो.

वह अपने पैरों का इलाज एम्स में कराना था अदालत से परमिशन मिल जाने के बाद natwarlal को कानपुर के जेल से एम्स ले जाने का इंतजाम किया गया उनकी सिक्योरिटी और सेफ्टी के लिए तीन पुलिस वालों की ड्यूटी लगाई गई, तीनो पुलिस वाले उसके साथ थे दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उसे व्हीलचेयर से उतार कर पैसेंजर वाली सीट पर बैठा दिया गया.

जहां बैठते ही वो लेट गया पहला पुलिस वाला एम्बुलेंस दूसरा पुलिस वाला भी किसी काम से चला गया तब नटवरलाल ने तीसरे पुलिस वाले से कहा कि मुझे चाय पीनी है तीसरा पुलिस वाला चाय का इंतजाम करने लगा लेकिन जब वह लौट के आया तो हैरान रह गया. इसके बाद पहले और दूसरे पुलिस वाले भी लौट आए और सब परेशान हो गए क्योंकि 84 साल का नटवरलाल एक बार फिर पुलिस को चकमा देखकर भाग चुका था उसके बाद से लेकर अब तक किसी ने नटवरलाल को नहीं देखा.

52 से भी ज्यादा फ़र्ज़ी नाम

देश के आठ राज्यों में नटवरलाल के ऊपर 400 से भी ज्यादा के मामले ठगी के दर्ज थे. इन 400 मामलों में नटवरलाल के 52 से भी ज्यादा फ़र्ज़ी नाम सामने आये. मतलब इतने अलग-अलग नाम के साथ नटवरलाल ने लोगों के साथ ठगी की.

Natwarlal की ठगी की शुरुआत

लेकिन इसके ठगी की शुरुआत तब हो गई थी जब वो स्कूल में पढ़ा करता था. नटवरलाल जब मैट्रिक में फेल हुए तो उनके पिता ने उनको डांट लगाई.एक बार एक पडोसी ने बैंक मे जमा करने के लिए ड्राफ्ट दिया अपने पड़ोसी के सिग्नेचर को कुछ इस तरह कॉपी किया बाद में दो से तीन बार में उन्होंने पड़ोसी के खाते से हजार रुपए निकाल लिए यह थी उनकी ठगी की शुरुआत.

जब पड़ोसी को पता चला तो उन्होंने इसकी शिकायत उनके पिताजी से की पिताजी ने नटवरलाल की खूब धुनाई की पिताजी की धुनाई से गुस्सा होकर वह कोलकाता भाग गए.

कोलकाता में सेठ को चूना लगाया

कोलकाता जाकर उन्होंने एक सेठ के यहाँ नौकरी की वह सेठ के बेटे को पढ़ाया करते थे साथ ही वकालत भी किया करते थे. नटवरलाल ने अपनी फीस जमा करने के लिए सेठ से पैसा मांगे तो सेठ ने मना कर दिया.इसके बाद उन्होंने सेठ को कॉटन के बिजनेस का लालच दिया और नटवरलाल ने अपने सेठ को 4.5 लाख का चूना लगाया और वहां से रफू चक्कर हो गए.

जब फाइनेंस मिनिस्टर के नाम पे धोखाधड़ी की

Natwarlal ने ज्यादातर ठगी डिमांड ड्राफ्ट और नकली सिग्नेचर के जरिए की. डिमांड ड्राफ्ट के जरिए उसने जो ठगी की उसका एक नमूना उस समय के वित्त मंत्री नारायण दत्त तिवारी से जुड़ा हुआ है.दिल्ली के कनॉट प्लेस के एक बड़ी घड़ी के दूकान पर पहुचे और बोले नारायण दत्त तिवारी के पर्सनल सेक्रेटरी है और कल कांग्रेस के बड़े नेताओं की मीटिंग है जिसमे नारायण दत्त तिवारी की तरफ से प्रधानमंत्री राजीव गांधी को 90 घंडिया भेट करनी है. और दुकानदार से बोला महंगी घड़ियाँ दिखाइए दुकानदार ने महंगी घड़ी दिखाई उन्होंने कहा हमें डिलीवरी नारायण दत्त तिवारी के दफ्तर के पास नॉर्थ ब्लॉक में चाहिए.

अगले दिन नॉर्थ ब्लॉक के पास नेताओं के भेष में नटवरलाल पहुंच गए उन्होंने डिलीवरी ली और एक फर्जी ड्राफ्ट दे दिया उसके बाद डिलीवरी देने आए शख्स को नटवरलाल नॉर्थ ब्लॉक में घुसते हुए दिखाई दिए दुकानदार की गाड़ी चली गई इसके बाद वह चुपचाप नॉर्थ ब्लॉक से बाहर आ गया.दुकानदार को दो दिन बाद पता चला कि नटवरलाल ने जो ड्राफ्ट दिया था वह फर्जी था.

पुलिस वाले से खेत जुतवाये

एक बार नटवरलाल जब जेल में था उसकी पत्नी लगातार उसको खत लिख रही थी और natwarlal जवाब नहीं दे रहा था उसकी पत्नी का जब अगला खाता आया तो जेलर खुद ख़त लेकर नटवरलाल के पास पहुंचा ख़त मे लिखा था खेत नहीं जोतवा पा रही है और आर्थिक तंगी बहुत है. नटवरलाल को पता था कि कोई भी बाहर से चिट्ठी आती है या अंदर से चिट्ठी बाहर जाती है तो जेलर साहब उसको पढ़ते हैं.उन्होंने ने लिखा की खेतों के बीचो-बीच खूब ढेर सारे पैसे और सोने जेवरात उसने गाड़ के रखे हैं.

अगले दिन ही उस ख़त से पहले पुलिस वाले पहुंच गए और उस खेत को पूरा जोत दिया मगर कुछ नहीं मिला फिर 15 दिन बाद उसकी पत्नी का ख़त आया उसने लिखा जेलर साहब का शुक्रिया जिनकी वजह से उनके खेत की जुताई हो गई और अब फसल भी अच्छी होगी.

जज से पैसे ले लिये

एक बार कानपुर की अदालत में पेशी के दौरान जज साहब ने नटवरलाल से पूछा की तुम इतनी ठगी कैसे कर लेते हो तब नटवरलाल ने जज साहब से 1 रूपया मांगा और अपनी जेब में रख लिया और बोला कि साहब लोग ऐसे ही लोग अपना पैसा मुझे दे दिया करते है. इसके बाद वो कोर्ट से बाहर आ गया लेकिन जज साहब के पैसे वापिस नहीं किये.

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